8.5.14

जब भी मैं किसी शहर को पीछे छोड़ता हूँ, न जाने क्यूँ उसे बस्ते में भर लाता हूँ. डरता हूँ एक दिन ये बस्ता इतना भारी ना हो जाये कि मुझे कहीं बसना पड़ जाए.    

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