आप अनंत-अनादि चिरकाल और अमाप्य-असीमित व्योम के चतुरायामी कपड़े पर टंके अतिक्षुद्र लघु-से-भी-लघुतर अणु हैं. नजरें न हटाइए. तथ्य वो होते हैं जिन्हें अनदेखा करने पर भी उनका असर जस का तस रहता है. तो ये भी अकाट्य तथ्य है. आपको अपनी स्थिति प्रमाणित करने के लिए भी निर्देशांकों की आवश्यकता है. वरना कैसे सिद्ध होगा कि आप हैं भी या नहीं. आखिर समय और अधर के अनंत विस्तार को देखते हुए आपका अस्तित्व, आपका होना, शून्य यानि न-होना जैसा ही हुआ न? नगण्य. मगर मानव चेतना की पहली कड़ी अहम् है. मैं हूँ- से सब शुरू होता है. तो अस्तित्व को सिद्ध तो करना होगा. तो दौडिए निर्देशांकों के लिए- लिंग, वर्ण, जाति, देश आदि पर काँटे फंसा दीजिये. फिर ढूँढिये माँ-बाप, पत्नी-प्रेयसी, पुत्र-पुत्री, मित्र और शत्रु भी. अंत में एक arbitrary विचारधारा से भी अपने को जोड़ लीजिये. दुनिया को दो हिस्सों में बाँट लीजिये- समर्थक व विरोधी. अब इतनी सत्ता-इकाईयों में तार फंसे हैं तो आपका अस्तित्व खुद-बखुद सिद्ध हो गया, है न? तो भूल जाईये भय को. चैन की सांस भरिये. मगर रुकिए! जिन से आप जुड़े हैं, अरे आपके तथाकथित निर्देशांक यानि coordinates, क्या वे सब भी इस अनन्तता में लटके बिंदु मात्र नहीं. धत्त तेरे की. सत्यानाश. अब फिर से शुरू करना होगा.
1 comment:
bhasha ka aisa vihangam drishtant kam hi dekhane ko milta hai.Lage raho mannu bhai...
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