फेसबुक के एक टैग का नतीजा. मेरी पसंदीदा किताबें.
2. Siddhartha (Herman Hesse): एक जर्मन लेखक पूर्वी फलसफे पर ऐसी किताब लिख पायेगा ये सोचना भी मुश्किल है. इस किताब की ख़ास बात यह है कि इसके मुख्य पात्र की यात्रा को आप भी उसके साथ साथ जीते हो. हर अध्याय में ऐसा लगता है कि पा लिया सत्य को, मगर फ़िर दिल उचाट और यात्रा पुनः चालू.
3. One Hundred Years Of Solitude (Gabriel Garcia Marquez): कभी आप किसी पुरानी हवेली में जायें और सीढ़ियों के नीचे आपको बेशकीमती जवाहर से भरा एक कमरा मिल जाए, Marquez पढ़ के कुछ ऐसा ही लगता है. आपको पता नहीं चलता कि आप कहानी पढ़ रहे हैं या कविता, या कि आपके ज़हन के धरातल में भी एक और कमरा है.
4. Dance, Dance, Dance (Haruki Murakami): मुराकामी का अजीब सा फ्लेवर है. Marquez के जादू की याद तो दिलाता है पर बुढ़िया के बाल सा हल्का भी है. कहानी में कुछ तो होता है, पर कुछ होता भी नहीं. फ़िर भी आप पन्ने पलटने को मजबूर हो जाते हो. बड़ा ही surreal सा अनुभव.
5. दीवाने-ग़ालिब (चचा ग़ालिब): मैंने करीब 12 वर्ष की उम्र में दीवाने ग़ालिब का पाकिट बुक एडिशन पढ़ा था. नीचे फुटनोट्स में कठिन उर्दू शब्दों के हिन्दी अर्थों के साथ. समझ तो शायद कम ही आया होगा लेकिन ज़हन की तह में बैठ गया. फ़िर गुलज़ार और जगजीत सिंह के ग़ालिब ने इस से एक बार फ़िर सरोकार करा दिया. आज भी कुछ लिखो तो इसीलिए पसंद नहीं आता क्यूंकि बेंचमार्क इतना ऊंचा है.
6. वयं रक्षामः (आचार्य चतुरसेन): करीब 18 साल की उम्र में मेरे पास काफ़ी समय था. किसी कम्पटीशन में नहीं निकला था और ग्रेजुएशन को स्वीकार नहीं कर पाया था. तो एक लोकल लाइब्रेरी खोद डाली. वहां विमल मित्र और प्रेमचंद के साथ ये भी पढ़ा. भाषा पुरानी और क्लिष्ट जरूर थी (जिस से मुझे कोई समस्या नहीं थी) पर कहानी एकदम नयी. रावण के नज़रिए से रामकथा. डर और बाजीगर के शाहरुख़ से भी पहले एंटीहीरो से मेरा पहला साक्षात्कार.
7. Harry Potter Series (J K Rowling): जब मैंने 30 की उम्र में कई सालों के बाद दुबारा पढ़ना शुरू किया तो ज़िंदगी बदल चुकी थी. अब वो रेलगाड़ी की तरह शादी और नौकरी की सामानांतर पटरियों पे दौडती थी, वो भी अंधाधुंध गति से. अब किताबें अध्ययन का नहीं distraction का ज़रिया थी. मैं इस दूसरी पारी का श्रेया Rowling को देता हूँ. ये सात किताबें करीब 4-5 बार पढ़ चुका हूँ. हर बार उतना ही मज़ा देती हैं.
8. Catch 22 (Joseph Heller): जब मैंने पहली बार ये किताब पढ़ी तो मुझे समझ नहीं आयी. तब तक cynicism से मेरा सरोकार जो नहीं हुआ था. अपने शहर से बाहर निकला, टेड़ी दुनिया देखी, सीधा चलना सीखा, फ़िर जो इसको पढ़ा तो हर पन्ना चाट का पत्तल बन गया जिसे पूरी तरह जीभ से साफ़ किये बिना रखना मुश्किल.
9. बेनामी ग़ज़ल संकलन: ग़ज़ल और कविता को अक्सर संकलनों में ही पढ़ा मिक्स टेप्स की तरह. कुछ सुखन दिल की खाल पे ऑर्किड्स की तरह जम गए- इब्ने इंशा, दुष्यंत कुमार, मजाज़, साहिर, ज़िगर, ज़फर, सब के कुछ शेर अक्सर लड़कियों को इम्प्रेस करने के लिए प्रयोग में तो लाये पर ऐसी कोई लडकी मिली नहीं जिसे वो ठीक से समझ आयें. हमारी बदकिस्मती.
10. मकरंद और गद्यकौमुदी: कच्ची उम्र के प्यार की उम्र भले ही कम हो पर बुखार सबसे तेज़ होता है. बचपन में चंदामामा, नंदन, पराग और इंद्रजाल कॉमिक्स से लेकर गृहशोभा, कादम्बिनी, फ़िल्मी कलियाँ ने पढ़ने की आदत को ज़िंदा रखा, मगर केंद्रीय विद्यालय में दसवीं की ये किताबें गंभीर साहित्य से पहली मुलाकात बनीं. भवानीप्रसाद मिश्र का सतपुड़ा, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का बेटी को उठाना, सुमित्रानंदन पन्त, महादेवी वर्मा, दिनकर, हरिवंश राय बच्चन, सब से इन्होने ही पहली दफा मिलाया.
और भी बहुत हैं. Alan Moore के Watchmen और V for Vendetta, Neil Gaiman आदि पर फिर कभी.
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