8.9.14

अष्टावक्र सा पेड़

विलियम साहेब की खंडहर पड़ी कोठी के दालान में एक इकलौता पेड़ है- अष्टावक्र सा टेड़ा-मेडा और कुंठित. पर वो एक ख़ास पेड़ है, ये बात केवल औरांग जानता है. 21 दिसंबर को जब दिन के पैर घुटनों तक ही पहुँचते हैं और रात की उंगलियाँ कमलककड़ी सी लम्बी हो जाती हैं, जब शिशिर आख़री पेग जल्दी से गटकाता है और शीत अपनी लालटेन फूंक कर कोहरा उगलती रातों में फेरी लगाने को तैयार होता है, जब बाँझ अधेड़ औरतें सलेटी शाल ओढ़ के आधे गोलों में बैठ चाँद पे थूकती हैं, ऐसी विंटर सोलस्टिस की रात उस विकृत पेड़ की खाल चांदी की हो जाती है और टहनियों के पोरों पे अलग अलग रंग के बालों के गुच्छे उग आते हैं- ब्लोंड, ब्रूनेट, ऑबर्न, लाख, अखरोट और बैंगन के रंग वाले बालों के गुच्छे. औरांग उन्हें चुपके से तोड़ लाता है. अब तो उस के घर के तीन कमरे भर चुके हैं.

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