नरबहादुर ने किसी को नहीं बताया, अपनी बीबी तक को नहीं, कि उसे बरदान मिला है. कि जब वो बम्बई की सड़ी गर्मी में पिरामिड मॉल के बाहर ड्यूटी बजा रहा होता है, जब नमकीन पसीना उसकी भंवों से टपक टपक कर उसकी आँखों को लाल कर रहा होता है तो उन आँखों के पीछे बर्फ गिर रही होती है. बम्बई तो बस उसकी खाल आयी है. उस खाल के अन्दर का असली नरबहादुर तो अभी भी अपने अहाते में बैठा हुक्के की राख कुरेद रहा है. सामने कंचनजंघा पे बर्फ गिर रही है. रास्ते फिर बंद हो जायेंगे. पर भीतर के नरबहादुर को इसकी कतई फिक्र नहीं, क्योंकि उसकी खाल तो बम्बई में ड्यूटी बजा रही है. 7 तारीख को जब पगार मिलेगी तो नरबहादुर की खाल, भीतर के नरबहादुर को मनीऑर्डर कर देगी.
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