18.6.14

winds of change

बारिश होने से पहले भीगी ठंडी  हवा चल रही है. वहां ऊपर अपने पंजों से तार को कस कर पकडे एक गरुड़ चिड़िया बैठी है, आँखों की पीली किनारियों और बुझे कोयले के रंग वाली. उसके पंख हवा में कंपकंपा रहे हैं. कहीं हवा ना भर जायें उनमें, तार पकड़ से छूट न जाये. 

जैसे तुम जकड़े बैठे हो अपने नाखूनों की चमड़ी से- एक से ज़मीन, दूसरे से बीबी बाल बच्चे, तीसरे से रोजी, चौथे से देश-भाषा-धर्म की पहचान, पांचवें से गुरूर, छठे से अपूरी इच्छाएं, सातवें से सुई की नोक भर अपनी समझ, आठवें से भूत और भविष्य, नवें से सच झूठ के सिक्के और दसवें से मुठ्ठी भर कहानियां. हवा तेज़ है. 

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