22.9.14

धर्म और जेंडर

मैं इस वीकेंड एक पूजा के समापन समारोह में गया था. ज़्यादा तो नहीं सुन पाया, पर थोड़े में भी कुछ नयी बातें पता चली.

श्रीकृष्ण की 16,108 रानियाँ थी. पर असल में वे आठ पटरानियाँ अष्टसिद्धियाँ थी और बाकी 16,100 वेद की ऋचाएं. यानी ये कोरा प्रतीकवाद है इसलिए श्रीकृष्ण आरोपमुक्त हैं.

ईश्वर सब प्राणियों को अपनी तरफ आकर्षित करने की शक्ति रखते हैं, मात्र कामलोलुप स्त्रियों को छोड़ कर, क्योंकि वे सर्वदा कामस्मृति में लिप्त रहने के कारण प्रभु की ओर ध्यान नहीं लगा पाती. इस लिए श्रीकृष्ण को महारास रचना पड़ा ताकि वो कामक्रीड़ा के माध्यम से इन दुष्टाओं को धर्म के मार्ग पर ला सकें. यानी एक और चरित्र प्रमाणपत्र स्त्रियों के चरित्र के मूल्य पर.

(मेरी बुआ ने बताया कि) 60 के दशक में जब तुलसीदास का साहित्य सिलेबस में जोड़ा गया तो प्रगतिशील छात्राओं ने इसका कड़ा विरोध किया. क्योंकि अब पाठ्यक्रम में 'ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी, ये सब ताड़न के अधिकारी' को सम्मिलित कर लिया गया था. विद्वान पुरुषों ने तरह तरह के तर्क कुतर्क दे कर इस दोहे के छिपे हुए अर्थ उजागर किये. काफ़ी हो-हल्ले के बावजूद पाठ्यक्रम जस का तस रहा. बात आयी गयी हो गयी.

पुरुषरचित धर्म ने स्त्रियों को एक व्यवस्थित व सुसंचालित तरीके से आधीन रखने का षड़यंत्र किया है. दुःख है कि स्त्रियाँ इस से अनभिज्ञ रह कर खुद इस आधीनता को बढ़ावा देती हैं.

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